समाज की जनसंख्या एवं आवश्यकता के अनुसार धर्मशाला अथवा भवन का निर्माण हो

सभी समाजबंधू को मेरा नमस्कार । मुझे बहुत खुशी हो रही है कि गुजरात में पत्रिका के प्रारंभ से ही विभिन्न समाजबंधुओं के विचारों और समाचारों को जाना जा रहा है। गुजरात में समाज की प्रगति के लिए हर जिले के समाजबंधु आगे आ रहे हैं। और नये नये विचार डाल रहे हैं। आज में समाज के बारे मे मेरा विचार प्रस्तुत कर रहा हूं । मेरा विचार किसी का विरोध करना या किसी के बारे में कुछ लिखना कतई नहीं है । कई दिनो से मे मन ही मन मे असमंजस दुविधा से गुजर रहा हूं। बहुत सोचने के बाद लगा की ये  विचार समाज के सामने लाना ही चाहिए । और तब मुझे ख्याल आया कि यदि विचारों को वहां रखा जाए जहां विचार-मंथन होता है, तो विचार-मंथन की प्रक्रिया मजबूत हो जाती है।


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज मे रहेता है । जिस प्रकार मनुष्य को अपने परिवार के प्रति कुछ कर्तव्य होते है । उसी प्रकार उसका समाज के प्रति भी कुछ कर्तव्य है  । इन्ही कर्तव्य को करना ही समाज सेवा है । एक पुण्य का कर्म है । इसके कारण लोग अमर हो जाते है । उन्हे सदियो तक याद किए जाते है । समाज के व्याप को देखते हुए समाज में मजबूत संगठनात्मक ढांचे की जरूरत होती है । अपना समाज जनसख्या में कम होने से अपने समाज के लिए  संगठन और एकता बहुत जरूरी है , जिससे समाज मे रीतिरिवाज प्रस्तापित हो , समाज मे अनुसाशन आये , और सब समाज बंधू का सम्मान हो । एक भवन या धर्मशाला भी होनी चाहिए जिस पर समाज गौरव महसूस कर सके। 


अब बात करते है ,  समाज संगठन में लोग आते क्यू है ?  मेरे मत अनुसार समाज की सेवा करना उनका मुख्य उद्देश्य होता है । दूसरा उनकी खुद की समाज में पहचान बने । उनको यश किर्ति और नामना मिले । यही बात दाता के लिए भी लागू होती है । आजकल समाज मे अनेक गतिविधि चल रही है । उसमें से एक गति विधि है , समाज के लिए समाज वाडी बनाना भी है । अलग अलग लोगो के विचार सुनने समझने से मुझे प्रतित हुआ, की ये विचार गुजरात के अन्य समाज समूह की  प्रेरणा से लिया गया है । अन्य समाज और अपने समाज की उपयोगिता मे भिन्नता है । यहा समाज की पॉप्युलेशन डेमोग्राफी का ध्यान नहीं रखा गया है । अन्य समाज की वाडी जहां बनाई जाती है । वहा पे उनकी जनसख्या महतम होती है । जब की अपना समाज पूरे गुजरात मे छोटे छोटे समूह मे बसा हुआ है । मेरे विचार से कोई एक जगह पे वाडी बनाने से समाज मे मनमुटाव बढेगा । क्यूकी कोई एक जिले मे बनी हुई वाडी का उपयोग अन्य जिले वालो को न्युनतम होगा ।


अपने समाज मे एक परंपरा बनती जा रही है । समूह  विवाह अलग अलग जिलो मे होता है । वहा  के  समाजबन्धु मिलकर उनसे बनती सेवा उपलब्ध कराकर समाज का सहयोग करते है । और ये करने से धन्यता अनुभव करते है । यह बहाने से सभी समाजबंधू को गुजरात के अलग अलग जिलो मे विहार करने का मोका मिलता है । वहा की प्रतिभाशाली  समाजबन्धुयों को मिलने का मोका मिलता है । जिला के समाजबंधू अपने अपने खुबीयो से काम करते है । और समाज के सामने अपनी पहेचान बनाते है । यहा पर मे उदाहरण देना चाहूँगा.. जैसे हिम्मतनगर में जो समूह विवाह हुआ उसमे संजयभाई ,  सुनिलभाई ,  विजयभाई , चंद्रेशभाई जैसी कई प्रतिभा समाज के सामने आई । हाल ही मे हुए आणंद जिले के कार्यक्रम से मनिशाबेन, योगेशभाई, हसमुखभाई , सागरभाई जैसे कई युवा प्रतिभाएं समाज के सामने आई । सही मायने में आणंद जिले के समाजबंधुओ ने बहुत अच्छा आयोजन किया था । विशेष में जिला के समाजबंधू ही कार्यक्रम का आर्थिक बोझ ढोते है । ऐसा करके समाज की सेवा करते है और धन्यता महसूस करते है । इस तरह समाज की जनसंख्या को देखते हुए वाडी की अनिवार्यता कम है । उस कारण से समाज में सब समाजबंधू की भागीदारी और सहयोग भावना कम होगी । जो समाज हित में नहीं है । यह मेरे पर्सनल विचार है। इसका मतलब यह नही है कि में संगठन या समाजबंधुओ के धर्मशाला बनाने के पक्ष में नही हूं। में तन,मन और धन से पूर्णतः सहयोग के लिए तैयार हूं और आगे भी रहूंगा। 


मेरा स्पष्ट मंतव्य है की वाडी की जगह पर समाज को गौरवान्वित करे ऐसा भवन निर्माण होना चाहिए । समाज की विशिष्ट  परिश्थितियों को देखते हुए ,  ये भवन की उपयोगिता महत्तम होगी । मेरे सपनो का भवन की प्रेरणा मुझे सरदार पटेल सेवा समाज मिठाखली, अहमदाबाद से मिली है । जहाँ रहकर मेने मेरी पढ़ाई पूरी करी है । वहा पर ग्राउंड और फ़र्स्ट फ्लोर पे समाजिक कार्यक्रमों के लिए रखा जाए । और ऊपर के दो फ्लोर पे होस्टेल बनाई जाए । शिक्षा से ही समाज का विकास होगा । यहा ये बात ध्यान मे रखनी चाहिए की , अपने समाज मे ज्यादातर लोग मध्यम वर्गी है । 


अंत में मेरा कहना यही है , समाज की एकता को बढ़ाने के लिए , जनसंख्या और परिवारों की आवश्यकता और शैक्षिक उपयोगिता को जोड़कर भवन अहमदाबाद , वडोदरा, या फिर विद्यानगर(आणंद) में बनाना चाहिए । यहा पे मेरा समाज के सामने कोई विरोध नहीं है । वाडी या भवन के बारे मे समाज जो भी निर्णय आऐगा वो मुझे शिरोमान्य है । हम पूरा परिवार के तरफ से समाज का तन , मन, धन , से सहयोग करते आए हैं  और करते रहेंगे । हम समाज को सम्पूर्ण सहयोग करेंगे । में क्षमा प्रार्थी हूँ । मेने अपने विचार ही प्रस्तुत किए हैं । अन्य जिला या प्रदेश के लोगो के लिए भी सुविधा उपलब्ध हो सकती हैं । समाज के चार-पाँच लोगो को रोजगारी – धंधा भी दे सकते हैं । अन्य समाज के बच्चे और उनकी सामाजिक गतिविधि के लिए किराये पर देकर समाज के लिए अच्छी आय का स्त्रोत भी पैदा किया जा सकता हैं ।  बेहतर होगा कि आप इस लेख की आलोचना करने की बजाय इसे विचार-मंथन प्रक्रिया का हिस्सा बनाएं। इस पर गंभीरता से विचार कर समाजबंधु एवं कमिटी के सदस्यो से चर्चा करे । एक और अनुरोध है कि इस मुद्दे पर किसी भी बहस, सोशल मीडिया या टेलीफोनिक प्रतिक्रियाओं में न पड़ें। जय समाज जय परशुराम

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