गौड देश से आये (इस में वर्तमान उत्तरप्रदेश-काशी-हरियाणा प्रदेश विभिन्न नाम से थे) उस वख्त प्रदेश या जनपथ ही देश कहलाते थे.तीनबार अलग अलग अंतराल से तीनबार आये. प्रथम राजा आदिसूर के समय में आये तो आदि गौड कहलाए. इसके लगभग 60-65 साल बाद ये लोग श्री सेन शयाणा(आज का हरियाणा) जो गंगा , यमुना, सरस्वती के किनारो पे बसा है वहा आके बसे..वो प्रदेश हरा भरा होने के कारणे हारित प्रदेश भी कहा गया. इसलिए उन्होने हरियाणा गौड ब्राह्मण अंगीकार किया. तभी से गौड ब्राह्मण का एक अलग जाति हरियाणा गौड ब्राह्मण हुआ.
सतयुग में सप्तऋषीओ में से एक भारद्वाज ऋषि की पेढी से शुरुआत हो के कई 100 पेढीयो बाद आए..तब वो हारित ऋषि के पास आए..हरियाणा देश में वहा पर हारितेश्वर महादेव और हरियाणी श्री माता का मंदिर आश्रम स्थापित किया..वहा हारित ऋषि के आश्रम में पडाव किया अर्थात हारित ऋषि अपने कार्यस्थ यजमान तथा हरियाणा गौड ब्राह्मण के गुरु या राजगुरु या समाज प्रवर्तक के स्थान पर पथ प्रदर्शक(रास्ता दर्शक) बनके अपना मार्ग द्रढ किया..
दिल्ली के आधिश्वर राजा अनंगपाल तंवरने अपने राजगुरु(उपाध्याय) जंगज्योतिषी व्यास को दिल्ली(हस्तिनापुर) में अपने पूर्वज, पांडवो के वंशजो के राजगुरु और विद्यवान पुरोहित रहा करते थे, कई पीढीओ तक राजगुरु रहे...राजा अनंगने अपने वंशज के गुरुओ को बुलवाकर दिल्ली में शुभकार्य के लिए मुहूर्त निकलवाया.. इस पर जगज्योतिषी व्यासने शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त में एक किली गाडी, (यानी नीव की स्थापना की).. राजा द्वारा विश्वास नही करने पर किली वापिस उखडवायी गई तो उसके साथ खून निकला..राजाने पुनः आग्रह किया कि किली पुनः गाडी जाए परंतु व्यासजीने कहा की अब यह पूर्व की भाती नही गड सकती तथा ढीली ही रहेगी..इसे कोई शासक पूरी तरह टाईम तक राज न कर सकेगा,, जो दिल्ली में हम देख सकते है..
राजा द्वारा जगज्योतिषी व्यास पर अविश्वास करने के कारण उन्होने अपने आपको अपमानित महेसूस किया तथा दिल्ली छोडकर परिवार सहित शर्याण प्रदेश (वर्तमान जयपुर, ढूढाड,मत्स्य देश शर्याण देश में ही थे) में आ गए...तथा उन्होने पुरोहितगीरी छोडकर कृषि एवं पशुपालन कार्य को अपनाया तथा अपने वंश को भविष्य में दान-दक्षिणा न लेने की शपथ दी तभी से शर्याण गौड ब्राह्मणो एवं हरियाणा गौड ब्राह्मण का एक अलग वंश शुरु हो गया.
एक जनश्रृति वृतान्तानुसार विक्रम संवत 1353 में आमेर रियासर के महाराजा मलेशी या मालसिंहने या मलयसीने हरियणा गौड ब्राह्मणो को अपने राज्य आमेर के खंड में आग्रहपूर्वक आमंत्रित कर बसाया था..तभी से लालसोट, जयपुर हमारा मूल मुकाब बन गया..जयपुर रियासत में बसनेवाले हरियाणी ब्राह्मण क्षेत्र से आए थे इसी कारण हरियाणा गौड कहलाए...महेनती एवं बलिष्ट होने के कारण इन ब्राह्मणोने उज्जड बंजर भूमि और पशुपालन में कठिन कार्य करके कृषि में सफलता प्राप्त की..
आमेर के राजा मलेशी ने अपने वंशजो को 72 गांव वशवाट के लिए दिए..उसी पर से समाज के 72 गौत्र प्रस्थापित हुए...
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