गणगौर प्रेम एवं पारिवारिक सौहाद्र का एक पावन पर्व है, जिसे की हिन्दुवों द्वारा मनाया जाता है. गणगौर पर्व है जिस में गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है। गणगौर राजस्थान का मुख्य पर्व है और मध्यप्रदेश, युपी, गुजरात में भी कही कही आस्था के साथ इस पर्व को मनाया जाता है. इस दिन गणगौर की पूजा की जाती है, लड़कियां एवं महिलाएं शंकर जी एवं पार्वती जी की पूजा करती हैं. गुजरात के अहमदाबाद में पुरोहित परिवार की महिलाओने गणगौर पर्व बडी आस्था के साथ मनाया..आस्था और भक्ति के साथ शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें सोलह श्रृंगार से सजी महिलाएं भक्ति गीतों पर झूम उठीं।
तो दूसरी और अहमदाबाद के आदिनाथनगर में हरियाणा गौड बाह्मण समाज की महिलाओने भी गणगौर पर्व धामधूम से मनाया...गणगौर में गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है. यह पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव की और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस पर्व में जहाँ कुंवारी लड़कियां इस दिन गणगौर की पूजा कर मनपसंद वर की कामना करती हैं, वहीँ शादीशुदा महिलाएं इस दिन गणगौर का व्रत रख अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है।
बहुतों के मन में ये सवाल जरुर आया होगा की आखिर में गणगौर क्यूँ मनाया जाता है? गणगौर पर्व के पीछे मान्यता है कि इस दिन कुंवारी लड़कियां गणगौर की पूजा करती हैं तो उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति होती है और शादीशुदा महिलाएं यदि गणगौर पूजा करती हैं और व्रत रखती है तो उन्हें पतिप्रेम मिलता है और पति की आयु लंबी होती है। पौराणिक मान्यता अनुसार ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शंकर जी को वर (पति) के रूप में पाने के लिए बहुत तपस्या और व्रत किया. फलस्वरूप माता पार्वती की इस तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर माता पार्वती के सामने प्रकट हो गए। भगवान शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने का अनुरोध किया. वरदान में माता पार्वती जी ने भगवान शंकर जी को ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की. माता पार्वती की इच्छा पूरी हुई और मां पार्वती जी का विवाह भोलेनाथ के साथ सम्पन्न हुआ। मान्यता है कि भगवान शंकर जी ने इस दिन माँ पार्वती जी को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था. मां पार्वती ने यही वरदान उन सभी महिलाओं को दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर जी की पूजा साथ में विधि विधान से करें और व्रत रखें।
चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रतधारी महिलाएं घर के पवित्र स्थान में लकड़ी की बनी टोकरी में जवांरे बोती हैं और इन जवांरो को ही गौरी (मां पार्वती) और ईशर (भगवान शंकर) का रूप माना जाता है। गणगौर का व्रत रखने वाली महिलाएं सिर्फ रात में एक समय का भोजन करती हैं. जवांरो का विसर्जन होने तक प्रतिदिन दोनों समय गणगौर की पूजा करने के बाद भोग लगाया जाता है। गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं व विवाहित स्त्रियां ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर और पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर चौकी पर स्थापित करती हैं। गणगौर की स्थापना में सुहाग की वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं एवं सुहाग की सामग्री का पूजन कर ये वस्तुएं गौरी जी को अर्पित की जाती हैं. इसके बाद गौरी जी को भोग लगाया जाता है फिर गौरी जी की कथा सुनी जाती है. कथा सुनने के बाद शादीशुदा महिलाएं चढ़ाए हुए सिंदूर से अपनी मांग भरती हैं।
गणगौर की पूजा में गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली और मेहंदी से 16-16 बिंदी लगाती हैं. गणगौर में चढ़ने वाले फल व सुहाग के सामान की संख्या भी 16-16 ही रहती हैं. महिलाएं भी इस दिन 16 श्रंगार में नजर आती है। गणगौर पर्व में पूजा के समय लोकगीत भी गाये जाते हैं. गणगौर पर्व में गाये जाने वाले लोकगीतों को इस पर्व की जान कहते हैं. लोकगीतों के बगैर यह पर्व अधूरा है। गणगौर महिलाओं का त्योहार माना जाता है इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है। गणगौर के पूजन में प्रावधान है कि जो सिन्दूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है,महिलाएं उसे अपनी मांग में सजाती हैं।शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में इनका विसर्जन किया जाता है।
गौरतलब है कि होली के बाद से शुरू होने वाला यह पर्व चैत्र पक्ष की गणगौर तीज पर खत्म होता है, महिलाएं और युवतियां 16 दिनों तक प्रतिदिन प्रातः गणगौर माता की पूजा अर्चना करती हैं। इस तरह 16 दिनों पर गणगौर पूजा अर्चना के साथ गौरी तीज पर गणगौर पर्व का समापन होता है।
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