जोबनेर की ज्वाला माता के दर्शन, राजस्थान के इस शक्तिपीठ पर माता के घुटने की होती है पूजा

जोबनेर शहर की पहाड़ी पर स्थित ज्वाला माता कामनाप्रद सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। नवरात्रा पर देशभर से लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं। माता को विशेष सोलह श्रृंगार कर नौबत शंख वादन के साथ महाआरती की जाती है। माता के दरबार में अखंड दीप ज्योति हमेशा प्रज्जवलित रहता है। पहाड़ी पर ज्वाला माता का मंदिर मूल रूप से चौहान काल में संवत 1296 में बनाया गया था। सन् 1600 के आसपास जगमाल पुत्र खंगार जोबनेर के प्रतापी शासक हुए, जो ज्वाला माता के परम श्रद्धालु थे। राव खंगार ने अपने गढ़ के सामने विशाल दरवाजा बनवाया जो ज्वाला पोल के नाम से जाना जाता है। दरवाजे पर स्वप्न को लेकर पंक्ति अंकित है आईजी सपनै राव खंगार कै। 1619 से 1638 के शासनकाल में जोधपुर महाराजा गजसिंह के लिए ज्वाला की कृपा पाने का उल्लेख भी मिलता है।


जयपुर से 50 किलोमीटर के अंतर में स्थित जोबनेर में पहाड़ी पर धार्मिक आस्था और शक्तिपीठ स्थल के रूप में मशहूर ज्वाला माता के यहां शारदीय नवरात्र में लक्खी मेला लगता है। यह मेला 15 दिन तक निरन्तर चलता है। यहां साल में दो मेलों का आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शनों को आते हैं। पौराणिक मान्यता है कि यहां माता के घुटने की पूजा की जाती है।


मंदिर के पुजारी सतिप परासर ने बताया कि मंदिर के नीचे लांगुरिया बलवीर ऊंचे चबूतरे पर विराजमान हैं। लांगुरिया को भैरव भी कहा जाता है, जो माता के रक्षक माने जाते हैं। ठिकाने से मेले के लिए भक्तों को परवाना भेजा जाता है, जिसे राव जाति के लोग भक्तों तक लेकर पहुंचते हैं। मेले में पहुंचे वाले अलग-अलग पंथ के लोगों का पूर्व राजपरिवार की ओर से पाग, शिरोपाव व नारियल देकर सम्मान किया जाता है। मान्यता है कि निसंतान दंपति संतान की कामना लिए माता के मुख्य द्बार पर मेहंदी से हाथ का छापा और उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं। रोगों से मुक्ति के लिए महिलाएं माता के यहां शरीर का कोई एक वस्त्र छोड़कर जाती है।


पूर्व राजपरिवार के संग्राम सिह ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में मां पार्वती का अधजला शरीर कुंड से निकालकर क्रोधित शिव ने तांड़व किया था। तांड़व के दौरान जांघ से घुटने तक का हिस्सा यहां जोबनेर में गिरा, जो शक्तिपीठ कहलाया। यहां माता के घुटने की पूजा की जाती है। मंदिर को 732 वर्ष साल पहले मूल रूप चौहान काल में दिया गया था। माता के परम भक्त राव खंगार को मां ने सपने में आकर मंदिर में मंडप बड़ा करने व मेला लगाने की प्रेरणा दी थी।


राव खंगार के पुत्र जैतसिंह के शासनकाल में अजमेर के शासक मोहम्मद मुराद ने हमला कर जोबनेर ज्वाला माता मंदिर और चार किलों को ध्वस्त करने की रणनीति बनाई थी। मोहम्मद मुराद 32 हजार 200 सैनिकों के साथ हमले के लिए निकल पड़ा था। चिंतित जैतसिंह ने ज्वाला माता का स्मरण किया और सैनिकों के अलावा स्थानीय लोगों और वहां एक बारात में आए हुए बारातियों सहित आठ हजार लोगों को तैयार किया। माता ने जैत सिंह के सपने में आकर कहा कि तेरी फतह होगी। रात में रास्ते में विश्राम के लिए रुकी मुराद की आधी सेना को जैतसिंह ने मौत के घाट उतार दिया।


(फोटो-वीडियो सौजन्य राजुभाई शर्मा, मणिनगर से)

(मंदिर के गर्भगृह वीडियो सौजन्य - ज्वाला माता मंदिर कमेटी से)

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