मां सती की जीभ से बना शक्तिपीठों में से एक 'ज्वाला देवी मंदिर' , कांगडा, हिमाचलप्रदेश

अकबर और अंग्रेजों ने की थी ज्वाला बुझाने की कोशिश, लेकिन रहे थे नाकाम, इस शक्तिपीठ में प्राकृतिक रूप से जल रहीं हैं 9 ज्वालाएं

दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व’ नामक यज्ञ करवाया और उस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया. इस पर भगवान शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर अपमानित महसूस किया और सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी. भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दिव्य नृत्य करने लगे. भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल किया और माता सती पर प्रहार कर दिया. हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि जहां-जहां माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया हैं. ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं.


शक्तिपीठ वे जगह हैं जहां माता सती के अंग गिरे थे. शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी मंदिर में माता सती की जिह्वा (जीभ) गिरी थी. इस कारण यह मंदिर प्रमुख 9 शक्तिपीठों में शामिल है. हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा घाटी से 30 किलोमीटर दक्षिण में ज्वाला देवी मंदिर स्थित है. यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि मंदिर के गर्भगृह से निकल रहें ज्वाला को माता का स्वरूप मानकर पूजा जाता हैं. यहां पृथ्वी के गर्भ नौ ज्वालाएं निकल रही हैं. ज्वाला देवी मंदिर को जोतावाली का मंदिर और नगरकोट मंदिर भी कहा जाता है. ज्वाला देवी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं. इस मदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है. आजतक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है. कई भू-वैज्ञानिक ने कई किमी की खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है. साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है.


ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं, जो माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक हैं. मंदिर एक सबसे बड़ी ज्वाला जो जल रही है, वह ज्वाला माता हैं और अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी एवं मां अंजी देवी हैं.

कांगड़ा घाटी में स्थित श्री ज्वालामुखी शक्तिपीठ की मान्यता 51 शक्तिपीठों में सर्वोपरि है. इन पीठों में यही एक ऐसा शक्तिपीठ है जहां मां के दर्शन साक्षात ज्योतियों के रूप में होते हैं. शिव महापुराण में भी इस शक्तिपीठ का वर्णन है. जब भगवान शिव माता सती को पूरा ब्रह्मांड घूमाने लगे, तब सती की जिव्हा इस स्थान पर गिरी थी. इससे यहां ज्वाला ज्योति रूप में यहां दर्शन देती हैं.

एक अन्य दंत कथा के अनुसार जब माता ज्वाला प्रकट हुईं, तब ग्वालों की एक टोली को सबसे पहले पहाड़ी पर ज्योति के दिव्य दर्शन हुए. बता दें कि राजा भूमि चंद्र ने यहां मंदिर का भवन बनवाया था. यह भी धारणा है कि पांडव ज्वालामुखी में आए थे. कांगड़ा का एक प्रचलित भजन भी इस का गवाह बनता है- "पंजा पंजा पांडवां मैया तेरा भवन बनाया, अर्जुन चंवर झुलाया मेरी माता."

राजा अकबर भी मां ज्वाला की परीक्षा लेने के लिए मां के दरबार में पहुंचा था. उसने ज्योतियों को बुझाने के लिए अकबर नहर का निर्माण करवाया था, लेकिन मां के चमत्कार से ज्योतियां नहीं बुझ पाई. तब राजा अकबर एक अन्य प्रचलित भेंट के अनुसार नंगे पैरों माता के दरबार आया. राजा अकबर को अहंकार हुआ था कि उसने सवा मन सोने का छत्र हिंदू मंदिर में चढ़ाया था. मां ज्वाला ने इस छत्र को अस्वीकार कर खंडित कर दिया था. आज भी दर्शनार्थ अकबर का छत्र मंदिर में मौजूद है.

मुख्य मंदिर के बाहरी छत्र पर सोने का पॉलिश चढ़ाया गया है. इसे महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल में चढ़वाया था. उनके पौत्र कुंवर नौनिहाल सिंह ने मंदिर के मुख्य दरवाजों पर चांदी के पतरे चढ़वाऐ थे, जो आज भी दर्शनीय हैं.

वायु मार्ग
ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।

रेल मार्ग
रेल मार्ग से जाने वाले यात्री पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मारंडा होते हुए पालमपुर आ सकते हैं। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।

सड़क मार्ग
पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा यात्री अपने निजी वाहनों व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहां तक पहुंच सकते हैं।

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