घटवासन या बटवासन माता मंदिर, (गुढ़ाचंद्रजी)करौली के दर्शन

करौली जिले के गुढ़ाचंद्रजी कस्बे में नदी के किनारे पहाड़ी पर घटवासन देवी का भव्य मंदिर स्थापित है। प्राचीन मंदिर होने के साथ ये स्थल पर्यटन की दृष्टि से भी अहम स्थान रखता है। यूं तो यहां वर्षभर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है लेकिन विशेष तौर पर रामनवमी व जानकी नवमी पर घटवासन देवी का मेला भरता है। इसमें हजारों श्रद्धालु अपनी मुराद लेकर माता के दर्शन करने को पहाड़ी पर पहुंचते हैं।


पहाड़ी पर मां भगवती की करीब 500 वर्ष प्राचीन प्रतिमा के अलावा भैरव महाराज, क्षेत्रपाल महाराज, भोमियाजी महाराज व लांगुरिया की प्रतिमाएं हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि मां घटवासन देवी की प्रतिमा 500 वर्ष पूर्व पहाड़ी में चट्टानों के खिसकने से प्रकट हुई थी। बुजुर्गों के अनुसार गुढ़ाचंद्रजी में चौहान राजा के दरबार में सेवादार घाटोली गांव निवासी केसरी ङ्क्षसह मेहर को देवी प्रतिमा के प्राकट््य का भाव दिखा था। किवदंती है कि घाटोली गांव से राजा के दरबार में जाने के दौरान घाटे वाली नदी के पास केसरी ङ्क्षसह को स्त्री की आवाज सुनाई दी। केसरीङ्क्षसह जब वहां गया तो वहां देवी ने पहाड़ी पर मंदिर निर्माण की इच्छा जताई। गरीबी के चलते मंदिर निर्माण में केसरी ङ्क्षसह ने असमर्थता जताई। इस पर देवी ने निर्माण में मदद करने की बात कही। मां भगवती घटवासन देवी के प्रति मीणा समाज के महर गोत्र के लोगों द्वारा विशेष रूप से पूजा जाता है। इस के अलावा हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज के कई गौत्र में कुलदेवी के स्वरुप में माता घटवासन देवी की पूजा की जाती है..

अद्भुत है मां घटवासन देवी का इतिहास
बुजुर्ग लोगों के अनुसार करीब एक हजार वर्ष पूर्व क्षेत्र में पड़े भीषण अकाल के चलते लोग परदेश को पलायन कर गए। क्षेत्र के भोजल महर व पीपा चौहान भी अकाल के चलते बांगड़ देश गमन कर गए। दोनों मित्र बांगड़ देश में रहकर मेहनत मजदूर कर परिवार के लिए अनाज एकत्रित करने लगे। एक दिन मां घटवासन देवी ने दोनों काे दर्शन दिया तथा उनके साथ उनके देश चलने की इच्छा जहिर की। दोनों मित्रों ने अपने देश में अकाल की बात कह कर अपनी पीड़ा व्यक्त की तो मां घटवासन देवी ने कहा कि गुढ़ाचंद्रजी के घाटे में मेरी प्रतिमा की पूजा अर्चना करो तो कभी भी क्षेत्र में अकाल नहीं पड़ेगा। दोनों मित्रों ने आकर घाटे की पहाड़ी पर चमतरिक रूप से प्रकटी मां देवी की प्रतिमा की पूजा अर्चना शुरू कर दी तब से ही मां घटवासन देवी मीणा जाति के महर गौत्र की कुल देवी प्रसिद्ध हुई। मां घटवासन देवी ने मौहान राजाओं की दानवों से रक्षा की जिसके प्रमाण आज भी मंदिर के आसपास मौजूद है। पहाड़ी पर विराजी मां घटवासन देवी मंदिर में पूजा के समय बजने वाले ढ़ोल नगाड़ों की आवाज जहां तक पहुंचती है। वह क्षेत्र आज भी प्राकृतिक आपदाओं से मुक्त रहता है। चैत्र मास की रामनवमी तथा वैशाख सुदी 9 वी को मां घटवासन देवी का वार्षिक मेला भरता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग माता की पूजा अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली व उन्नति की कामना करते है।

प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करती है मां घटवासन देवी
कस्बे के दोनों ओर से गुजरने वाली नदीयों के समागम स्थल तथा कस्बे के प्रवेश द्वार पर पहाड़ी पर विराजी मां घटवासन देवी प्राकृतिक आपदाओं से बचाने तथा संकट मोचनी के नाम से पूरे प्रदेश में विख्यात है।

वर्ष में दो बार भरता है मेला
यूं तो घटवासन देवी मंदिर में प्रत्येक माह की अष्टमी को मेले जैसा माहौल रहता है। प्रत्येक सोमवार को भी सैकड़ों श्रद्धालु मां के दरबार में ढोक लगाने आते हैं। लेकिन वर्ष में दो बार रामनवमी व जानकी नवमी को मां भगवती का विशाल मेला लगता है। जिसमें जयपुर, भरतपुर, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि स्थानों से श्रद्धालु आते है। मनोती पूर्ण होने पर मां के दरबार में लोग मालपुए की प्रसादी चढाते हैं। मंदिर में 12 महीने रामायण पाठ, सवामणी, भंडारे आदि आयोजन होते रहते हैं। सावन भादो माह में देवी के दरबार में प्रदेश के अधिकांश जिलों से सैकड़ों पदयात्राएं आती है। रात को देवी का जागरण होता है।

समिति की अनूठी पहल
ढाई दशक पहले तक मां का दरबार सीमित दायरे में था। लेकिन 2 वर्ष पहले मंदिर विकास कार्यों के लिए एक समिति का गठन किया गया। ये समिति मंदिर के विकास कार्यों में अनवरत लगी हुई है। समिति ने मंदिर के अंदर सौन्द्रर्यीकरण और विकास कार्य कराए हैं। मंदिर में मां भगवती का विशाल दरबार, यज्ञशाला, यात्री हाल, भंडारे के लिए रसोई घर, यात्रियों के लिए 3 दर्जन से अधिक कमरे, सामुदायिक भवन के निर्माण कराए गए हैं। समिति के प्रयासों से मंदिर पहुंचने के लिए सांसद व विधायकों की मदद से पुलों का निर्माण व अन्य कार्य कराए गए हैं। समिति के वर्तमान में पूर्व सरपंच राम खिलाड़ी मीणा तिमावा अध्यक्ष हैं। जबकि पूर्व सरपंच गुढ़ाचंद्रजी रामेश्वर मीणा कोषाध्यक्ष है। इनके अलावा समिति में दो दर्जन से भी अधिक सदस्य हैं जो मंदिर के विकास कार्यों में पूर्ण भागीदारी निभाते हैं। समिति श्रद्धालुओं के लिए छाया, पानी, चिकित्सा, ठहरने करने की नि:शुल्क व्यवस्था करवाती है। इसके अलावा समिति जन सरोकार के कार्यक्रमों के तहत बालिका सम्मान समारोह,पङ्क्षरडा अभियान, पेड़ लगाने जैसे कार्यों में भी भूमिका निभाती है

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