यहां भगवान श्रीकृष्ण ने भेष बदलकर किया था देवी रूप धारण, राधा संग लीलाओं का माना जाता है स्थान

ब्रज में यूं तो कई मंदिर हैं, लेकिन नंदगांव के सांचौली गांव में मां सांचौली देवी का मंदिर है, वो अपने आप में अनूठा है। यहां जन जन के आराध्य भगवान श्रीकृष्ण देवी स्वरूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि मां सांचौली देवी सांची अलि (सच्ची सहेली) बन भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। जो भक्त सच्चे मन से मनोकामना करता है, मां सांचौली उसे पूरा करती हैं। यूं तो मथुरा के ब्रज में हर तरफ मंदिर ही मंदिर देखने को मिलते हैं और चारों तरफ सिर्फ मंदिरों की ही आवाज आती रहती हैं, जहां राधा-कृष्ण के नाम का जाप होता रहता है, लेकिन जब बात की जाए ब्रज में देवी मां की तो इनके भी मंदिर काफी बने हुए हैं और देवी माता के मंदिर के साथ-साथ उनकी परंपरा भी काफी प्राचीन और कहानी बेहद रोचक है.

सांचौली देवी मंदिर के पुजारी दीनदयाल पाराशर के अनुसार कन्हैया नंदगांव से गाय चराने के लिए आसपास के वनों में भ्रमण करते थे। वृषभानु नंदिनी राधारानी उनसे मिलने वन में आती थीं। बरसाना से राधारानी अपनी सखियों के साथ कन्हैया से मिलने चलीं, तभी वृषभानु बाबा ने उन्हें टोका कि राधा तुम कहां जा रही हो। इस पर राधा जी के मुख से अचानक निकल गया कि वो देवी मां की पूजा के लिए जा रही हैं। इतना सुनते ही वृषभानु जी ने उनके साथ अपने सेवकों को भेज दिया ताकि वो देखकर आएं कि राधे जू किस देवी की पूजा करती हैं।

सेवकों को अपने साथ चलता देख राधा जी विचलित हो उठीं और कृष्ण मिलन का भेद खुल जाने से डर गईं। ऐसी विषम परिस्थिति में राधारानी ने मन ही मन प्रार्थना की कि हे यशोदा नंदन आज आप मेरी लाज रखें और सांची अलि (सच्ची सहेली) की भांति मेरी सहायता करें। अंतर्यामी श्रीकृष्ण ने श्रीजी की पुकार को सुना और स्वयं चुनरी ओढ़कर देवी स्वरूप बनकर झाड़ियों में बैठ गए। जब राधारानी अपनी सखियों के साथ यहां आईं तो उन्होंने देखा कि श्याम सुंदर स्वयं देवी स्वरूप में विराजमान हैं। उनके मुख से बरबस ही निकल गया धन्य हो सांची अलि। उसी दिन से यहां देवी मां का यह स्वरूप उस वन में स्थापित हो गया।

हरियाणा गौड ब्राह्मण समुदाय के कई लोग देवी माता के मंदिर में दर्शन के लिए आते है...इन समुदाय में कई गौत्र के लोग कुलदेवी के स्वरुप में भी माताजी की पूजा करते है..

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