सांवली माता, वली माता, चामुण्डा माता एवं कूकसा माताजी का स्थान

पंकज शर्मा, अहमदाबाद : हरियाणा गौड ब्राह्मण-गुजरात की टीमने गौत्र , कुलदेवी की खोज एवं उनका सही प्रकार से विवरण समेत जानकारी जुटाने के लिए मुहिम छेडी है। संभव है कि हमें जो जानकारी मिली है उसमें शोध की गुंजाइश हो.. लेकिन हमने कुलदेवी के स्थान पर रहने वाले पुजारी से जानकारी हासिल करने का भी अथक प्रयास किया है। ताकि ज्यादा अच्छी तरह से जानकारी मिल सके। इस कडी में हमें कूकस गांव में स्थित कूकसा माता मंदिर के बारे में जानकारी जुटाई। हम आपको इस मंदिर के बारे में वो सब कुछ बताना चाहते हैं जो आपके लिए जरूरी है । खासकर उन लोगों के लिए जिनकी यह कुलदेवी देवी है। हम इस रिपोर्ट में आपको बताएंगे हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज में कई गौत्र में कुलदेवी मानी जाने वाले कूकसा माता मंदिर एवं उनके स्वरुप के बारे में।


जयपुर से 18 किमी की दूरी पर और आमेर तालुका से 9 किमी की दूरी पर कूकसा नाम का एक गांव है..जहां कूकसा माता का मंदिर स्थापित है। हालांकि, कूकस गांव से ढाई किलोमीटर अंदर वन क्षेत्र में जाकर इस मंदिर तक पहुंचा जाता है। यह मंदिर कोई बड़ा या भव्य नहीं है। लेकिन यह एक छोटी सी जगह पर स्थित । मंदिर के आसपास सुनसान जगह नजर आती । यह क्षेत्र वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। जब आप कूकसा गांव से होते हुए वन क्षेत्र में कूकसा माताजी के मंदिर में प्रवेश करेंगे तो आपको दो प्रतिमाएं दिखाई देंगी। कहा जाता है कि ये दोनों मूर्तियां असल में कूकसा माताजी ही हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर माताजी का साक्षात वास है। आप सोच रहे होंगे कि दोनों मूर्तियों में से कुकसा माता कौन हैं? तो हम आपको बता दें कि कूकसा माता चामुंडा माताजी का ही नाम है। जी हां.. चामुंडा माता मंदिर में आपने हमेशा दो माताजी के स्वरुप देखे होंगे, यहां वही चामुंडा माताजी विराजमान हैं। दिलराज शर्मा (बंदावाला) पिछले पांच वर्षों से इस मंदिर में माताजी की नियमित पूजा और सेवा कर रहे हैं। उन्होंने एक पुजारी के रूप में अपने कई अनुभव भी हमारे साथ साझा किये।


माताजी के मंदिर के बारे में पुजारी दिलराज शर्मा(बंदावला) ने गुजरात पत्रिका टीम को बताया कि कूकसा माता का मंदिर 700 से 800 साल पुराना बताया जाता है। यहां मंदिर की माता स्वतः ही(स्वयंभू) प्रकट हुई थी। ये मां हैं चामुंडा माताजी..कूकस गांववाले और आसपास के स्थानिय लोग इस मंदिर को चामुंडा माता के नाम से ही जानते हैं। लेकिन हरियाणा गौड़ ब्राह्मण समाज और मीणा समाज के लोग माताजी को अलग-अलग नामों से जानते हैं। कूकस गांव में होने के कारण माताजी का नाम कूकसा माताजी स्थापित हो गया है। जैसे कि हरियाणा गौड़ ब्राह्मण समाज के कुछ गौत्रों में यह माताजी कुलदेवी हैं। जैसे भसवाड़ा, कूकसा पंचोली, बापलावत,वैद्य गोत्र। इन गौत्र में कूकसा माता कुलदेवी मानी गई है इसलिए इस गोत्र के लोग नियमित रूप से और साल में एक या दो बार यहां दर्शन के लिए आते हैं। और वे माताजी को कुकसा माता के रूप में ही पूजते हैं। इसीलिए इन्हें कूकसा माता कहा जाता है।


पुजारी ने बताया कि कुकसा माता को वली माता या सांवली माता के नाम से भी जाना जाता है। यह नाम मीना समुदाय ने दिया है.. क्योंकि यही माताजी को मीणा समुदाय में भी पूजा जाता है। कूकसा गांव में कभी बड़ी संख्या में मीणा समुदाय के लोग रहते थे। और वे इसी स्थान पर चामुंडा माता की पूजा करते थे। वे माताजी को सांवली माता या वली माता कहते थे। इसलिए लोग इस मंदिर में माताजी को इन दोनों नामों से जानते हैं। यह भी कहा जाता है कि माताजी की दोनों मूर्तियां कठेड़ा नामक पेड़ के नीचे से स्वयंभू ही प्रकट हो गई थीं। हालाँकि, सटीक विवरण किसी के पास नहीं है। कूकसा पंचोली गौत्र के लोगों ने यही से निकासी की थी। इसलिए वे वर्षों से माताजी की पूजा करते आ रहे हैं। क्योंकि ये गांव उनका भी माना जाता है।


कूकसा माता के इस मंदिर में हर साल लगभग चार से पांच हजार श्रद्धालु आते हैं। इनमें हरियाणा गौड़ ब्राह्मण समाज के एक हजार श्रद्धालु हर साल यहां दर्शन के लिए आते हैं। मन्नत मांगना और विशेष पूजा-अर्चना कर माताजी की आराधना करते है और दर्शन करके अपने आपको धन्य हुआ महसूस करते है। कूकसा माताजी के मंदिर पर साल में एक बार जनवरी माह में संक्रांति से पहले भंडारा का आयोजन किया जाता है। यहां पौष बड़ा का त्योहार मनाया जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भंडारे में दान करते हैं और महाप्रसादी का लाभ भी लेते हैं। दान के रूप में प्राप्त धन से भंडारे चलाए जाते हैं।


इसके अलावा साल में आने वाली बड़ी और छोटी नवरात्रि में भी यहां माताजी की पूजा की जाती है। नौ दिनों के बाद माताजी का जागरण भी किया जाता है। इतना ही नहीं, नौ दिनों के बाद 21 कन्याओं को भोजन भी कराया जाता है। भादरवा माह में कूकसा माताजी के मंदिर तक पदयात्रा का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें कूकस गांव से दूर स्थित दुर्गा माता के मंदिर से ज्योत जलाई जाती है। फिर भक्त इस ज्योति को चार किलोमीटर तक पदयात्रा करते हुए कुकसा माता मंदिर में लाते हैं। इस पदयात्रा में भी 700 से ज्यादा श्रद्धालु शामिल होते हैं. और ज्योति के दर्शन के साथ-साथ माताजी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। मंदिर को साल भर में करीब 10 हजार का दान मिलता है। जिसका उपयोग माताजी की महाप्रसादी के पीछे किया जाता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आप जयपुर रेलवे स्टेशन से आमेर तक निजी वाहन या बस से जा सकते हैं। यहा जागरण भी किया जाता है, अगर आप भी जागरण करवाना चाहते हो तो आप मंदिर के पुजारी दिलराज शर्मा का संपर्क कर सकते है उनका मोबाईल नंबर 9782211543, 9785896796 पर संपर्क करके सहयोग प्राप्त कर सकते है।


माता चामुंडाजी को प्रसन्न करने के लिए मंत्र अवश्य करे - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।। ।। क्लीं ह्रीं ऐं चामुण्डायै विच्चे ।।


यदि आप हरियाणा गौड़ ब्राह्मण समुदाय से हैं और आपको यह लेख पसंद आया है तो कृपया हमें प्रतिक्रिया दें। इस मंदिर के बारे में लिखा गया लेख पुजारी से बातचीत, स्थानीय लोगों से बातचीत और समाज में माताजी के बारे में लिखे गए लेख के संदर्भ पर आधारित है। हम लेख के माध्यम से कोई दावा नहीं करते हैं। (अपने सुझाव या प्रतिक्रिया इमेईल करे - guj.abhgb@gmail.com)

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