हनुमानगढ के पास गोगामेडी में स्थित जाहरवीर बाबा राजस्थान के माने जाते है लोकदेवता

क्या आप जानते है कि हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज में कई समाजबंधुओ गोगाजी के स्थान पर मत्था टेकने जाते है..? , क्या आपको पता है कि हमारे समाज के कई सदस्यो जाहरवीर बाबा को कुलदेवता के स्वरुप में पूजे जाते है..? अगर नही तो हम आपको आज गोगाजी महाराज के बारे में पूरी जानकारी बता रहे है...लेकिन हम कोई दावा नही करते है..हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा वीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे 'जाहरवीर गोग राणा के नाम से भी जाना जाता है। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर,राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। आज भी यह माना जाता है कि अगर किसी सांप के द्वारा काटे गए व्यक्ति को यहां लाया जाता है तो वह सांप के जहर से मुक्त हो जाता है। यह मंदिर लगभग 952 वर्ष पुराना माना जाता है। इस मंदिर में प्याज और दाल चढ़ाने की अनूठी परंपरा है, देश में ऐसा कोई मंदिर नहीं मिलेगा जहां प्याज को दान और प्रसाद के रूप में स्वीकार किया जाता है। मंदिर में साल भर प्याज का ढेर लगा रहता है। दान किए गए प्याज को बेचकर गौशाला और भंडारा का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि एक हजार साल पहले गोगाजी और आक्रमणकारी महमूद गजनवी के बीच युद्ध हुआ था। युद्ध में गोगाजी ने आसपास के इलाकों से सेना बुला ली थी। लड़ाई के लिए आए जवान अपने साथ दाल और प्याज लेकर आए थे। इस युद्ध में गोगाजी ने वीरगति को प्राप्त किया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी वापसी के दौरान, सैनिकों ने उनकी कब्र पर प्याज और दाल की पेशकश की थी, तब से यह परंपरा चली आ रही है। यहाँ दूर-दूर से सभी धर्मों के लोग श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उन्हें जहर पीर के नाम से बुलाता है। इस तरह गोगाजी एक धर्मनिरपेक्ष देवता के रूप में विराजमान हैं।

तो दूसरी ओर एक ऐसी मान्यता भी काफी प्रचलित है.. जिस में श्री गोगाजी के बारे में ऐसा कहा जाता था कि वे गोरखनाथ जी के परम शिष्य थे। नाथ पंथ में नौ सिद्ध पंथ हैं, उनमें से सबसे प्रमुख श्री गोरख नाथ हैं जो एक कुशल योगी थे। इस स्थान पर श्री गोरखनाथ की पूजा की जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि श्री गोगाजी इस स्थान पर श्री गोरखनाथ जी से मिले से और उनके शिष्य बन गए। गोरख नाथ जी ने उन्हें यहाँ आध्यात्मिक शिक्षा दी थी। श्री गोरख नाथ मंदिर इस स्थान से पश्चिम की ओर केवल 3 किलोमीटर दूर है। वैसे तो हर रोज गोगाजी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन भाद्र मास (अगस्त-सितंबर) के 9 वें दिन लोग गोगाजी श्रद्धांजलि देने के लिए यहां आते हैं। मंदिर में रिवाज के रूप में डीअर पर काला सांप बनाया जाता है और गोगाजी को प्रसन्न करने के लिए मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं और उसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। मंदिर में प्रसाद के रूप में चूरमा भी शामिल है। गोगाजी के सम्मान में हर साल एक विशाल मेला आयोजित किया जाता है जिसमें भारी संख्या में भक्त शामिल होते हैं।

भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। हिंदु इन्हें गोगा वीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं, इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर की यात्रा सभी धर्मों के लोग करते हैं। हर साल भादव शुक्लपक्ष की नवमी के मौके पर यहां पर एक मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसे ‘गोगाजी मेला’ के नाम से जाना जाता है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं।


गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।

(इस लेख से हम को दावा नही करते है, जानकारी संदर्भ लेख आधारित है)

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