अलवर की धौलागढ देवी माता का स्थानक | हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज के कई गौत्र में कुलदेवी के रुप में पूजा जाता है

धोलागढ़ माता मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में बहतुकलां गांव में स्थित है। जहां पहाड़ी पर लगभग 100 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर में माता की मूर्ति है। हर वर्ष वैशाख मास की पंचमी से एकादशी तक धौलागढ़ माता का विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यहां प्रतिवर्ष हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, दिल्ली, कोलकाता, राजस्थान आदि प्रांतों के श्रद्धालु मैया के दरबार में आते हैं और परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं। यूपी के मथुरा व आगरा जनपदों के श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है। इनका मंदिर के विकास में उल्लेखनीय योगदान रहा है। ग्राम पंचायत व मेला कमेटी के तत्वावधान में वैशाख बदी पंचमी से एकादशी तक लक्खी मेला भरता है। नवरात्र में भी श्रद्धालुओं की विशेष आावक रहती है। इसके अलावा वर्ष भर श्रद्धालुओं की आवाजाही से यहां जैसा माहौल बना रहता है।


देवी मैया के मंदिर की स्थापना की पीठे कई क्विदंतियां प्रसिद्ध हैं। इनमें एक प्रचलित है कि कधैला नाम की कन्या बल्लपुरा रामगढ़ ग्राम में डोडरवती बाहाण परिवार में जन्मी थी। बचपन में माता-पिता का स्वर्गवास हो लाने पर वह अपने भाई-भाभी के पास रहने लगी और रोजाना पास के पहाड़ों पर गायों को चराने जया करती थी और देर रात घर लौटती थी।

एक दिन भाई-भाभी को शक होने पर उन्होंने धैला का पीछा किया। उन्होंने देखा की वहां राजसभा में मुख्य देवी के सिंहासन पर धैला बैठी थी। भाई-भाभी को देख उसने वहीं अपने प्राण त्याग दिए। कालान्तर में लाखा नाम का एक बंजारा वहां से निकला और रात्रि विश्राम के लिए वहां रुका तभी वहां देवी प्रकट हुई और बोली इन गाडों में क्या है, उसने उत्तर में नमक बताया। जवाब पाकर देवी पहाड़ों में चली गई। सुबह जब बंजारे ने गाडों में नमक पाया तो वह करुण विलाप करने लगा। उसका करुण विलाप सुन देवी प्रकट हुई तो दोवी के समक्ष माफी मांगी और उसका माल पहले जैसा हीरा-जवाहरात हो गया। व्यापारी ने वापस लौटते समय वहां एक मंदिर व कुण्ड बनवाया, जो आज भी विद्यमान है। शनै:-शनै:- इसका काफी विकास हो गया। देवी मैया के प्रति लोगों की इतनी अटूट श्रद्धा है कि नवविवाहित जोड़े जात देने, मन्नत मांगने, बच्चों की लटूरी उतरवाने का महत्व है।

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