जयपुर : बंदौल घाटी में स्थित है 700 वर्ष पुराना महामाया समोद माता का मंदिर, मंदिर में 7 बार जात लगाने से आती है साफ बोली, तुतलाकर बोलने वाले बच्चे यहां होते हैं ठीक हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज में कई गौत्र के लोग कुलदेवी के स्वरुप में भी पूजते है

अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरा महामाया माता के मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पंजाब के लोग भी इस मंदिर में शीश नवाने के लिए पहुंचते हैं। जयपुर से 48 किलोमीटर दूर चौमूं -अजीतगढ़ स्टेट हाइवे पर सामोद में अरावलियों पहाडियों के बीच स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ महामाया मंदिर श्रद्धा एवं आस्था के साथ-साथ पर्यटन के लिहाज से भी मनोरम रमणीय स्थान है। जहां लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष मंदिर मे माता के जात जडुले चढ़ाने आते है। सामोद के बंदौल से मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को दो किलोमीटर का रेतीला व दो किलोमीटर पहाड़ी पथरीला रास्ता पार करना पड़ता है।


शक्तिपीठ महामाया मंदिर मे आस पास ही नहीं, दूर दराज से श्रद्धालु अपने छोटे बच्चों के जात-जडुले करने के लिए आते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में सबसे बड़ा चमत्कार उन बच्चों के लिए देखा जाता है, जो बच्चे बचपन से तुतला कर बोलते हैं या फिर बोली नही आती है। इस तरह के बच्चों की 7 बार यहां जात लगाई जाती है। इसके साथ ही चांदी और तांबे की धातु की जीभ बनाकर इस मंदिर में चढ़ाने से बच्चों की बोली सही हो जाती है। वहीं, चैत्र वैशाख के नवरात्रों व भाद्रपद महीने में यहां पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिलती है। करीब 700 वर्ष पहले बने इस मंदिर का गुणगान आज भी श्रद्धालु करते हैं।

मंदिर के महंत मोहन दास ने बताया कि करीब 700 वर्ष पहले इस मंदिर की स्थापना हुई थी। तब यहां संत द्वारका दास महाराज तपस्या करते थे। संत की तपस्या के दौरान इंद्रलोक से इंद्रदेव कि 7 परिया तपस्या स्थल के समीप स्थित बावड़ी में स्नान करने आती थी। स्नान करते समय इंद्र की 7 परियां बहुत शोरगुल एवं अठखेलियां कर रही थी। परियों की अठखेलियों व शोरगुल से संत द्वारका दास की तपस्या में व्यवधान पड़ता था। तपस्वी द्वारकादास ने कई बार परियों को शोर गुल करने से मना किया। लेकिन इंद्र की परियों ने चंचलता वश तपस्वी को परेशान करने की नियत से शोरगुल व अठखेलियां करना बंद नहीं किया।

जिससे एक दिन संत द्वारका दास को क्रोध आ गया और उन्होंने परियों को सबक सिखाने की ठान ली। इंद्र की परिया रोजाना की तरह नहाने के लिए अपने वस्त्र उतारकर बावड़ी में उतर गई। तेज-तेज शोरगुल करने लगी। तभी तपस्वी द्वारका दास महाराज बावड़ी के पास आए और परियों के वस्त्र छुपा दिए। परिया जब स्नान करके ऊपर आई तो उन्हें अपने वस्त्र नहीं मिले। परियों ने जब तपस्वी के पास अपने वस्त्र देखे तो अपने वस्त्र मांगने लगी, लेकिन तपस्वी ने परियों को वस्त्र वापस नहीं दिए। परियों को हमेशा के लिए यही आबाद रहने का श्राप दे दिया। तपस्वी ने कहा कि आज से तुम सातो यही बस जाओं और लोगों की सेवा करो,सच्चे मन से जो भी यहां आए उनकी मुरादे पूरी करो। तब से ये सातों परिया यहीं निवास करती है। जो भी यहां आस्था श्रद्धा के साथ मनोकामना लेकर आता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।

9 दिवसीय नवरात्रों के अवसर पर 7 दिन तक नवरात्रों में माता की विशेष पूजा-अर्चना होती है। जहां पर इस महामाया माता मंदिर को सातों बहनों के नाम से जाना जाता है। सातों बहनों के लिए 7 दिन तक मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है। अष्टमी व नवमी के अवसर पर भी माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है।जयपुर से 48 किलोमीटर दूर चौमू-अजीतगढ़ स्टेट हाईवे पर सामोद में अरावलियों पहाड़ियों के बीच स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ महामाया मन्दिर है..सामोद के बंदौल से मन्दिर तक पहुचने के लिए श्रद्धालुओं को दो किमी का रेतीला और दो किमी पहाड़ी पथरीला रास्ता पार करना पड़ता है. शक्तिपीठ महामाया मन्दिर मे आस-पास ही नहीं अपितु दूर दराज से श्रद्धालु अपने छोटे बच्चों के जडूले करने के लिए आते हैं.

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