रायसर की बाँकी माता, पहाड़ की चोटी पर बिराजित है बाकी माता का मंदिर

पंकज शर्मा,गुजरात : हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज में कुलदेवीयो की पूजा बेहद खास मानी जाती है। माना जाता है कि पूजा करने से न सिर्फ मन को शांति मिलती है बल्कि घर का माहौल भी अच्छा रहता है। क्या आप जानते हैं कि आपको अपने इष्टदेव को याद करने के अलावा अपने कुल देवता की भी पूजा करनी चाहिए। कुल देवता और कुल देवी की पूजा करने से घर में शांति का वातावरण बना रहता है। आज मैं आपके साथ हरियाणा गौड़ ब्राह्मण समाज के कुछ गौत्रों में कुलदेवी के रूप में पूजी जाने वाली बाँकी माता के मंदिर और उसके बारे में कुछ जानकारी आपके साथ साझा करूँगा।


बाँकी माता का मंदिर जयपुर (राजस्थान) जिले के रायसर गाँव मे स्थित है । यह गांव जमवारामगढ़ तहसील में आता है । जमवारामगढ़ से आंधी जाने वाले रास्ते पर यह मंदिर स्थित है। रायसर गाँव के देवीतला नामक स्थान पर बाँकी माता का यह प्राचीन मंदिर है । बाँकी माता का मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है । मंदिर पहुँचने के लिए सड़क मार्ग उपलब्ध है । जयपुर से मंदिर की दूरी लगभग 60 किलो मीटर है । यहां के रास्ते के मनोरम दृश्य मन में सुकून पैदा करते हैं । जयपुर से दौसा-शाहपुरा हाई वे से भी यहाँ पहुँचा जा सकता है । बाँकी माता को मीणा समाज के कई गोत्रों द्वारा कुल देवी माना जाता है । मंदिर की स्थापना समय से ही मीणा समुदाय के लोग ही माता जी की पुजा एवं आरती करते है। हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज में गील, गोगोरिया, गोदावस्या, झाडोल्या, ढाचोळ्या, मटल्या एवं मैथिला गौत्र की कुलदेवी बाँकी माता बताई गई है. हालाकि हम इसकी पुष्टि नही करते. सरसणा माताजी(बाँकी माता) के प्रकट होते समय बाधा आ गई थी, इसलिए (रुष्ठ) बाँकी माता के नाम से भी प्रसिद्ध है। 


कहा जाता है कि यह बाँकी माता का मंदिर लगभग 1300 वर्ष पुराना है । ऊंची पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 750 सीढ़ी बनी हुई है । कुछ समय पहले यात्रियों की सुविधा हेतु रेम्प का निर्माण भी किया गया है । सीढ़ी वाले रास्ते पर भैरव केसरी सिंह जी तथा पृथ्वी सिंह जी के मंदिर हैं । इनके दर्शन करना जरूरी माना जाता है । यहाँ दर्शन करने के बाद यात्री बाँकी माता के दर्शन के लिए जाते हैं । माता के दर्शन और ऊंचाई से दिखने वाले दृश्य मन को गदगद कर देते हैं । चढ़ाई की सारी थकान मिट जाती है । बांकी माता के मंदिर में कांच की सुंदर कारीगरी की हुई है । बांकी माता के मंदिर की परिक्रमा वाले रास्ते को सुंदर चित्रों से सजाया गया है । माँ जगदंबा के कई स्वरूप के चित्र दीवार पर बने हुए हैं । होली और दिवाली जैसे त्योहारों पर बाँकी माता के दर्शन हेतु अत्याधिक लोग दर्शन करने आते हैं । गुजरात से हरियाणा गौड ब्राह्मण समाज के कई परिवार बाँकी माता को कुलदेवी के स्वरुप में पूजा करने और ढोक देने के लिए यहां आते है। 


*बाँकी माता का प्राकट्य कैसे हुआ?*

कहा जाता है कि रायसर गांव के सोगन गोत्र के मीणा परिवार में एक भांगी भगत रहता था। एक बार भांगी भगत पशुओ चराने के लिए गया तो वहीं एक पहाडी पर एक दिन दिव्या प्रकाश होता है..जहाँ से उसे दिव्य शक्ति दिखाई देने का आभास होता है...आकाशवाणी होती है..हे वत्स. में शक्ति का अंश हू, भक्तो के उद्धार के लिए यहां प्रकट हो रही हूं. मेरे प्राकट्य लेने पर तुम मेरी सेवा के अधिकारी होंगे, और जो भी भक्त भक्ति भाव से मेरी आराधना करेगा उसकी सारी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होगी. कुछ देर बाद वहाँ घना अंधकार छा गया , तेज बारिस होने लगी और तूफान के बीच दिव्य प्रकाश दिखा और रथ पर सवार माता प्रकट होने लगी. अभी रथ का सुगन्या ही प्रकट हो पाया था कि भांगी भगत सबकुछ देखकर गभराया और चिल्लाने लगा. इससे माताजी नाराज हो गई और चट्टान में उतने ही प्राकट्य रुप में रह गई. बाद में भांगी भगतने माँ से क्षमा मांगकर गांववालो को सारी बात बताई। उसके बाद कहा जाता है कि गाँव का एक जमींदार , माता के महिमा को नहीं मानता था। दूसरे लोगों को भी ऐसा ही बर्ताव करने के लिए कष्ट देता था। कुछ समय बाद एक दिन जमींदार का मुँह बांका यानि टेढ़ा हो गया । काफी जगह इलाज करवाने के बाद भी वह ठीक नहीं हुआ। किसी ने उसे माता के दर्शन करके क्षमा याचना करने की सलाह दी। उसने ऐसा ही किया और बाँकी माता के मंदिर में आकर शीश नवाया। इसके बाद वो ठीक हो गया । कहा जाता है कि तब से इस मंदिर का नाम बाँकी माता का मंदिर पड़ा। माता के मंदिर से 1 km की दूरी पर शमशान में मुसाणया वाले भैरूँ जी का मंदिर स्थित है । मनोकामना पूर्ति के लिए यात्री यहाँ के दर्शन के लाभ उठाते हैं । यहाँ फाल्गुन महीने की अष्टमी तिथि पर मेला भरता है । मेले में लाखों लोग दूर दूर से आते हैं । मुसानिया भैरूँ जी को बाटी , पतासे , लौंग जोड़े आदि का भोग विशेष रूप से चढ़ाया जाता है । भैरूँ जी के दर्शन के बाद दर्शनार्थी वहाँ स्थित गौरी जी और शिव मंदिर के दर्शन भी करते हैं । गौरतलब है कि रायसर में पहाड़ी पर स्थित बांकी माता मंदिर हर वर्ष फाल्गुन माह की अष्टमी को लक्खी मेले का आयोजन होता है. पांच दिवसीय मेले के दौरान दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, यूपी, एमपी सहित प्रदेशों से व राजस्थान के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु माता के दरबार में आते है. इसके अलावा नवरात्र और अन्य दिनों में भी माता के मंदिर में श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। 


*श्रद्धालुओं को मिलेगी रोप वे की सौगात, नहीं चढ़नी होंगी बांकी माता मंदिर की 750 सीढ़ियां*

बाँकी माता मंदिर समिति के अध्यक्ष सीताराम मीणाने बताया कि अगले दो साल में रोपवे सेवा का काम भी पूरा हो जाएगा. यानी साल 2026 में भक्तों के लिए बांकी माता मंदिर में बिना सीढ़ियां चढ़े दर्शन करना और भी सुलभ और आसान हो जाएगा. जो फिलहाल प्रगति पर है. जानकारी के अनुसार, पहाड़ी स्थित बांकी माता के मंदिर में जाने के लिए श्रद्धालुओं को 750 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।  इस दौरान वृद्धजन श्रद्धालुओं को अधिकारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।  मंदिर तक रोप वे का निर्माण होने के बाद श्रद्धालुओं को कम समय में सुगमता से दर्शन हो सकेंगे। 


*बाँकी माता मंदिर का रिनोवेशन प्रगति पर, कुल 3.5 करोड का है प्रोजेक्ट*

बाँकी माता मंदिर द्वारा इन दिनों जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है। मंदिर समिति के माध्यम से कई भामाशाहों से दान आ रहा है। जिसका निर्माण कार्य चल रहा है। जो मार्च 2024 तक पूरा होने की संभावना है । बाँकी माता मंदिर समिति के अध्यक्ष सीताराम मीणाने बताया कि मंदिर निर्माण के प्रोजेक्ट की कुल लागत 3.5 करोड के आसपास हो रही। मंदिर का शिखर बेहद खास होनेवाला है.क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर के लिए जो पत्थर राजस्थान से लिए गए हैं उनका इस्तेमाल बांकी माता मंदिर के शिखर में किया जाएगा। इस खास शिखर के लिए कम से कम एक करोड़ रुपये खर्च होने वाले हैं। जो इस मंदिर का एक खास आकर्षण भी होगा। 


*शिखर होगा बेहद खास, जाने क्या हैं पत्थरों की विशेषताएँ?*

भरतपुर के रुदावल क्षेत्र के बंशी पहाड़पुर के सफेद पत्थर को एक बार देश के महत्वपूर्ण एवं जन-जन की आस्था के केंद्र अयोध्या स्थित बनने वाले राम मंदिर निर्माण में उपयोग हो रहा है, वही पथ्थर बाँकी माता मंदिर के शिखर के लिए भी लाया जा रहा है..भरतपुर जिले के बंशी पहाड़पुर स्थित खदानों के पत्थर को पसंद किए जाने का कारण जाना तो पता चला कि यहां का पत्थर एक विशेष किस्म का है. यहीं कारण है कि देश में दिल्ली का सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति भवन, लालकिला, अक्षरधाम मंदिर सहित प्राचीन भवन, फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाजा, आगरा का भरतपुर के गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर और जामा मस्जिद, जयपुर का विधानसभा भवन सहित विदेशों में अनेक विशाल मंदिर निर्माण में इसी पत्थर को लगाया गया है. यह पत्थर अधिक समय तक टिकाऊ है. वहीं इस पत्थर के अलावा बेहतर तरीके की गढ़ाई और नक्काशी किसी दूसरे पत्थर से भी कम नहीं है. इस पत्थर में न तो सीलन आती है और न ही यह चटकता है. इसी को आधार बनाकर इस पत्थर का चयन राम मंदिर के लिए किया गया.


*हर साल लाखों श्रद्धालु झुकाते हैं शीश *

बाँकी माता के मंदिर में माथा टेकने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु वर्ष भर आते रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक साल भर में 15 लाख से ज्यादा श्रद्धालु बाँकी माता के दर्शन के लिए आते हैं। होली के त्योहार पर लगने वाले लक्खी मेले में भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ होती है. यह लक्की मेला 10 दिनों तक चलता है। इस लक्की मेले में 10 दिनों में 10 लाख से अधिक भक्त माताजी के मंदिर में आते हैं और दर्शन पाकर खुद को धन्य महसूस करते हैं। उसके बाद चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में भी हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं। बाँकी माता के दर्शन करने आने वाले भक्त अपनी आस्था के अनुसार प्रसाद चढ़ाते हैं। भक्तों द्वारा बाँकी माता को हलवा प्रसाद, खीर-पुरी और चूरमे का प्रसाद चढ़ाया जाता है।


*समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की व्यवस्था उपलब्ध*

दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर समिति की ओर से विशेष व्यवस्था की गई है. इसमें 22 कमरों वाली एक सराय भी है। जहां 500 रुपए में नॉन एसी रूम उपलब्ध है। जब आपको 1100 रुपये में एसी रूम मिलता है. इसके अलावा 8 कमरों की अलग से व्यवस्था भी की गई है. जहां यात्री ठहर सकेंगे. इसका प्रबंधन मंदिर समिति द्वारा किया जाता है। बाँकी माता मंदिर समिति में कुल 13 सदस्य वर्तमान में मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जिसमें अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और उपाध्यक्ष सहित सदस्यों की एक टीम प्रशासन करती है। समिति में ज्यादातर लोग मीणा समुदाय से हैं.


*क्या आप कुल देवी और कुल देवता के महत्व के बारे में जानते हैं?*

अगर हमारे जीवन में सब कुछ शांति से शुभ चल रहा है तो समझ लीजिए कि यह सब आपके देवी-देवता के आशीर्वाद से हो रहा है। लेकिन आज का युवा भगवान को भूल जाता है। लेकिन उनके आशीर्वाद से आपके वंश की उन्नति हो रही है। इसलिए उन्हें भूलना नहीं चाहिए। हमारे पूर्वज कुल देवी और कुल देवता से प्रार्थना करते हुए हमारे लिए प्रार्थना करते थे, वह कहते थे कि 'मेरे बच्चों की रक्षा करो, बच्चे छोटे हैं, उन्हें खुशी और सुख प्रदान करो, वे जीवन में हंमेशा समृद्ध हों, और हमारे कुल को बचाएं, हमारे बच्चों को शक्ति दें। ' ऐसी दुआओं से हमारे माता-पिता ने अपने बच्चों को पाला है। और ये बच्चे जो बड़े हो गए हैं यानि आज के युवा और बच्चों को भी भगवान का ऋण अदा करना चाहिए। अगर आपको कुलदेवी के बारे में नही पता तो उसके लिए जानकारी जुटाने के प्रयास अवश्य करने चाहिए।


माता-पिता और बच्चों को पूरे परिवार के साथ वर्ष में कम से कम दो बार अपनी कुल देवी और कुल देवता के दर्शन करने अवश्य जाना चाहिए। इससे आपको लगने लगेगा कि साल भर की थकान दूर हो गई है। आपके जीवन में समृद्धि बनी रहेगी। हमारे कुल देवी-कुल देवता केवल भक्तों के भाव के भूखे हैं, यदि आप उन पर विश्वास करते हैं, तो अच्छा है, और यदि आप नहीं करते हैं, तो भी आपका कोई नुकसान नहीं होता है। जो भगवान महाभारत के युद्ध में अर्जुन का सारथी बन सकते हैं, जो भगवान द्वारका से अपने भक्त के लिए आ सकते हैं, वे भगवान आपको जीवन की कठिनाइयों से भी बचाएंगे और एक मार्गदर्शक के रूप में आपकी रक्षा करेंगे।  वही प्रभु आपको गलत निर्णय लेने से रोकेंगे और सही निर्णय की ओर आपका मार्गदर्शन करेगे। लोग तर्क देते हैं कि सब कुछ किस्मत से होता है। तो जब व्यक्ति बीमार होता है तो अस्पताल क्यों ले जाया जाता है? सब कुछ किस्मत पर छोड़ दो...लेकिन यह भगवान की कृपा है कि आपको कई दुखों और पीड़ाओं का एहसास भी नहीं होता है। जब कोई बड़ी आपदा आती है तब भी हम मदद के लिए भगवान को याद करते हैं। हम आशा रखते है कि इस लेख के माध्यम से आपको काफी रोचक जानकारीयां मिली होगी। आपके और आपके परिवारजनो पर कुलदेवी और कुलदेवता की कृपा सदैव बनी रहे। जय माता दी


(अगर आपके पास अपनी कुलदेवीओ या कुलदेवताओ के बारे में सही जानकारी हो तो हमे जरुर ई-मेईल पर फोटो के साथ भेजे -  guj.abhgb@gmail.com)

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